दिल्ली से रखते हैं ताल्लुक
दिल्ली में एक संयुक्त परिवार में पले-बढ़े अजय गुप्ता कम उम्र में ही पोलियो का शिकार हो गए थे। इससे उनके दोनों पैर स्थायी रूप से प्रभावित हुए। उनके दादा की मिठाई की दुकान उनकी दुनिया का केंद्र बन गई। इस दुकान में वह अपने परिवार के प्यार और देखभाल से घिरे हुए थे। हालांकि, जब एक शिक्षक ने उनके दादा से अजय को स्कूल भेजने का आग्रह किया, तो उनके जीवन ने महत्वपूर्ण मोड़ ले लिया। शुरुआत में अजय को स्कूल ले जाना एक चुनौती थी। उनके परिवार ने उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए अथक प्रयास किया। पहले उन्हें गोद में ले गए। फिर पीठ पर सहारा लेकर और अंत में साइकिल से। अजय के सहपाठियों की उनसे काफी सहानुभूति थी। वे अक्सर उनके साथ वापस जाने का इंतजार करते। इसके चलते कभी-कभी उन्हें मां की डांट भी पड़ती थी।
परिवार का काम में बटाया हाथ
अपनी शारीरिक सीमाओं के बावजूद अजय पढ़ाई-लिखाई में बहुत अच्छे थे। हालांकि, उन्हें एहसास हुआ कि नियमित शिक्षा उनके लिए प्रैक्टिकल नहीं है। वह अपने परिवार की मिठाई की दुकान पर काम में हाथ बटाने लगे। बाद में पिता की सेनेटरी की दुकान पर भी उनका सहयोग करते। जैसे ही अजय बड़े हुए शादी के प्रस्ताव आने लगे। हालांकि, उनके परिवार को चिंता थी कि एक दिव्यांग व्यक्ति के रूप में जीवनसाथी ढूंढ़ना एक कठिन काम होगा। अजय की मुलाकात दीपशिखा से हुई, जो उनसे उम्र में छह साल बड़ी और उनसे ज्यादा पढ़ी-लिखी थीं। अपने परिवार की आपत्तियों के बावजूद अजय अपने फैसले पर अडिग रहे और उन्होंने दीपशिखा से शादी कर ली।
पत्नी का मिला भरपूर साथ
अजय की जिंदगी में दीपशिखा एक स्तंभ की तरह साबित हुईं। उन्होंने अजय और उनके परिवार को अटूट समर्थन और प्रोत्साहन प्रदान किया। उनके दो बच्चे हैं। पूरी पढ़ाई-लिखाई में दीपशिखा ही बेटे-बेटी के स्कूल-कॉलेज जाती रहीं। आज बेटा लॉयर और बेटी डॉक्टर है। भारत में कंप्यूटर क्रांति की शुरुआत के साथ अजय ने प्रौद्योगिकी की क्षमता को पहचाना और कंप्यूटर केंद्रों में काम करना शुरू कर दिया। हालांकि, उनके जीवन का एक नया उद्देश्य तब मिला जब वह माता-पिता बन गए। उन्होंने महसूस किया कि छोटे बच्चों के लिए आकर्षक और प्रभावी शैक्षिक कार्यक्रमों की कमी है। फिर उन्होंने एक इनोवेटिव प्ले स्कूल के कॉन्सेप्ट पर काम शुरू किया।
अब करोड़ों का बिजनेस
2004 में अजय ने हरियाणा के हिसार में अपना पहला 'बचपन प्ले स्कूल' खोला। यह स्कूल बच्चों को खेल-खेल में सीखने का माहौल प्रदान करने के उनके दृष्टिकोण का प्रमाण था। अजय की व्यावसायिक समझ और दीपशिखा के अटूट समर्थन के साथ 'बचपन' ने तेजी से लोकप्रियता हासिल की। समय के साथ 'बचपन प्ले स्कूल' तेजी से बढ़ता गया। पूरे भारत में इसकी 1200 से अधिक फ्रेंचाइजी स्थापित हो गईं। 100 करोड़ रुपये के कारोबार के साथ अजय का कॉन्सेप्ट हकीकत बन गया था। उन्होंने न केवल एक सफल व्यवसाय का निर्माण किया था बल्कि अनगिनत बच्चों के जीवन को भी छू लिया था।
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